गुण
कुण्डलिया होना गुण का श्रेष्ठ है, नहीं जाति का भ्रात अवगुण का जो घर बना, जन कुल पर आघात जन कुल पर आघात, दम्भ बस पाले रहता हुआ नशे में चूर, न समझे किस रो बहता सतविंदर कह बीज, सही कौशल के बोना इसका करो विकास, तरक्की इसका होना। ©सतविन्दर कुमार राणा