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*भगवान से बड़ी कोई चीज़ नहीं होती*

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एक लड़का था। उसका नाम काजू था। वह पढ़ाई में बहुत अच्छा था। पर उसकी माता बड़ी आलसी थी। वह घर के काम छोड़ कर बेड पर लेटी रहती थी। एक दिन भगवान को उस पर गुस्सा आ गया। क्योंकि वह घर के काम नहीं करती थी। भगवान ने उसे कहा - तुम अपने बच्चों और अपने पति को मारना चाहती हो क्या? उसने उत्तर दिया- हाँ। फिर भगवान ने उसे कहा- तुम बहुत आलसी हो। और पहले मैं तुम्हें ही मार दूँगा। फिर वह डर गई और उसने उसी दिन से आलस करना बंद कर दिया। 🖊 मानवी (काकू) सुपुत्री सतविनद्र कुमार  कक्षा-2

कुण्डलिया

कुण्डलियाँ माना होता है समय, भाई रे बलवान लेकिन उसको साध कर, बनते कई महान बनते कई महान, विचारें इसकी महता यह नदिया की धार, न जीवन उनका बहता सतविंदर कह भाग्य, समय को ही क्यों जाना नहीं सही भगवान, तुल्य यदि इसको माना। 2 होते तीन सही नकद, तेरह नहीं उधार लेकिन साच्चा हो हृदय, पक्का हो व्यवहार पक्का हो व्यवहार, तभी है दुनिया दारी कभी पड़े जब भीड़, चले है तभी उधारी सतविंदर छल पाल, व्यक्ति रिश्तों को खोते उसका चलता कार्य, खरे जो मन के होते! 3 हँस कर भाई काट लो, दिन जीवन के चार छोटी-छोटी बात पर, सही न होती रार सही न होती रार, बुद्धि भी तनती जाती दूजा हो बेहाल, शान्ति खुद को कब आती सतविंदर कह मेल, सही होता इस पथ पर समय सख्त या नर्म, कटे फिर देखो हँस। ©सतविन्द्र कुमार राणा
 कुण्डलिया चहुँदिश देखो हैं भरे, ऊर्जा के भंडार अच्छी को गह लीजिये, तज दीजे बेकार तज दीजे बेकार, सही का संचय भी हो कभी करें ना व्यर्थ, इरादा ऐसा ही हो सतविंदर हिय शांत, रखो तुम वासर-निश गह लो सत्य विचार, मिले ऊर्जा जो चहुँदिश।(14-12-18) रखकर मुँह में राम को, छुरी बगल में दाब ऐसे भी क्या मित्रता, कभी निभे है साब कभी निभे है साब, मान लो बात हमारी रिश्ता जो अनमोल, सभी रिश्तों पर भारी सतविंदर वह मीत, खरा साथी जो पथ पर सदा सही व्यवहार, करे  मन में सत रखकर खुद ही है जो फूटती, यह ऐसी है धार मानो मन के भाव हैं, नहीं हृदय पर भार नहीं हृदय पर भार, कठिन पर इसे निभाना जो कहते हैं लोग, वही क्यों हमने माना सतविंदर कह प्रेम, सहजता में कुदरत की हो जाता जब देख, चले निभता यह खुद ही।(15-12-18) ©सतविन्द्र कुमार राणा
कुण्डलिया  जो भी तेरे पास है, उसमें कर संतोष चीज़ पराई चाहना, होता भाई दोष होता भाई दोष, कपट कर कुछ हथियाना या  फिर हो  पुरुषार्थ, वस्तु वैसी यदि पाना सतविंदर कह सत्य, नहीं नीयत खोटी हो बड़ा उसे ही मान,  बढ़े नेकी करता जो। लेना फिरकी काम है, बड़े बोलते बोल ताल लगे जन पक्ष की, बजें न ऐसे ढोल बजे न ऐसे ढोल, खोल ये पहनें कैसे वर्षा-दादुर गान, करें फिर छुपतें जैसे सतविंदर यदि बात, सही तो पड़ता देना सबसे सस्ता कार्य, भ्रात है फिरकी लेना। ©सतविन्द्र कुमार राणा
कुण्डलिया 1 दाता तेरी जाति औ, बता दिया है धर्म देख़े कोई स्वार्थ जब, करता जन यह कर्म करता जन यह कर्म, नीति में उसकी छाया जो दिखता अनुकूल, मर्म वैसा बतलाया सतविंदर कर जोड़, खड़ा कुछ समझ न पाता बतलाओ क्या जाति, तुम्हारी होती दाता? 2 आगे बढ़ना शुरु करें, दुनिया हो प्रतिकूल मंजिल को यदि पा लिया, फिर जाती है भूल फिर जाती है भूल, गुणों को गाने लगती जिससे निकले तंज, बड़ाई जिव्हा करती सतविंदर रख याद, चढ़े सूरज जग जागे उसके दिखता साथ, दिखे बढ़ता जो आगे। ©सतविन्द्र कुमार राणा