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साची

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कुण्डलियाँ  सच में साची जीतती, झूठी जाए हार सच से दिल हल्का रहे, झूठ बढ़ाए भार झूठ बढ़ाए भार, नहीं पद जिसके होते जिसको अक्सर बोल, मगज खाता है गोते सतविंदर हर बार, नहीं पाता झूठा बच बदले कई जुबान, सामने आता है सच। 2 लांछन लाने की सदा, आदत से मजबूर जिसके बिन ये दिख रहे, सही कार्य से दूर सही कार्य से दूर, पूँछ पकड़ी है ऐसी जैसे बाल अबोध, कहे ऐसी या वैसी सतविंदर तज तर्क,  छोड़ते न अनाड़ीपन जिनके तन पर  दाग़, लगाते वे ही लांछन। ©सतविन्द्र कुमार राणा