कुण्डलिया भाई साच्चा तब कवाँ, रक्षाबन्धन पर्व भाई के वें कर्म हों, भाणा नै हो गर्व भाणा नै हो गर्व, नजर हर इक हो आच्छी दुनिया की हर नार, सुरक्षित हो ज्या साच्ची 'सतविन्दर' कह ठीक, मान की रवै कमाई नारी का सम्मान, करै वो साच्चा भाई। .... ठाले बैठे ही जिसे, मिलता जाए माल काम-धाम को छोड़ कर, काटे दिन औ साल काटे दिन औ साल, नहीं करने की सोचे खाली बैठा पेट, युँही भरने की सोचे हो जाता बीमार, देह फिर गड़ गड़ हाले बनकर रहे हराम, रहे जो बैठा ठाले ... अपने दुख से कम् दुखी,सुख से सबके तंग ऐसे हर इंसान से,मोह सभी का भंग मोह सभी का भंग,नहीं जन उसको चाहें उसकी छवि से दूर,अलग सबकी हों राहें छीनूँ सबका चैन,यही जो देखे सपने आने क्यों दे पास,उसे फिर कोई अपने ... सबका दिल है काँपता, ऐसी घटना होय चलते रास्ते पर भई, सबकुछ अपना खोय सबकुछ अपना खोय, मान भी लूटा जाता मानवता पर मार, समझ में कब कुछ आता सतविन्दर कविराय, कहाँ का है यह तबका घटना ऐसी देख, काँपता है दिल सबका .... आजादी वह भाव है,जिससे सबको प्यार इसको पाने के लिए,हुई बहुत तकरार हुई बहुत तकरार,कई ने जान गँवाई ह
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साची
कुण्डलियाँ सच में साची जीतती, झूठी जाए हार सच से दिल हल्का रहे, झूठ बढ़ाए भार झूठ बढ़ाए भार, नहीं पद जिसके होते जिसको अक्सर बोल, मगज खाता है गोते सतविंदर हर बार, नहीं पाता झूठा बच बदले कई जुबान, सामने आता है सच। 2 लांछन लाने की सदा, आदत से मजबूर जिसके बिन ये दिख रहे, सही कार्य से दूर सही कार्य से दूर, पूँछ पकड़ी है ऐसी जैसे बाल अबोध, कहे ऐसी या वैसी सतविंदर तज तर्क, छोड़ते न अनाड़ीपन जिनके तन पर दाग़, लगाते वे ही लांछन। ©सतविन्द्र कुमार राणा
माथे की रोली दिखती
03-07-2019 माथे की रोली दिखती है, हिय चंदन को देखे कौन मूरत पर अर्चन सब देखें, मन से वन्दन देखे कौन दुनिया देखे मानें जिसको, ऐसे अपना है क्या बंध प्रणय बाँधता हम दोनों को, इस बंधन को देखे कौन? 4.7.19 तुम्हारा बोल हर-इक मेरे मन का गीत बन जाए कि तुमसे हारना मेरी असल में जीत बन जाए बनें हम राधिका-मोहन मुहब्बत के हवाले से हमारी प्रीत इस सारे जगत की रीत बन जाए। देह तपी जाती है सारी, दिल पर पर है छाया बादल आस लगाए बैठा प्यासा, सोचे आया-आया बादल जब-जब प्यास बुझाने की बस, आशा उससे रख लेते हैं झूठे जादूगर की जैसे, होता खाली माया बादल। ©सतविन्द्र कुमार राणा
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