कुंडलियाँ

कुण्डलियाँ


अच्छे कामों का सखे!, करना सदा प्रचार
उनकी तुम तारीफ़ को, सदा रहो तैयार
सदा रहो तैयार, गलत को भी तो टोको
जो करता सद्कार्य, पीठ उसकी ही ठोको
'सतविंदर' उद्गार, करो यह बिन दामों का
खोले सेवा द्वार, बयां अच्छे कामों का।



देख्या सै हमनै भई, होवै गुण की खान
देसी खाण्या की रहा, सदा बाजरा शान
सदा बाजरा शान, ठंड  खिचड़ी तै हारै
साथ मिलै जब शीत, राबड़ी  गर्मी  मारै
'सतविंदर' रै ठीक, लावणी का लेखा सै
इसतै मिलै अनाज, जमाने नै देख्या सै।

शीत:लस्सी
राबड़ी: लस्सी व भुने हुए बाजरे से बना शीतल पेय
लावणी: फसल कटाई

 मोटर घर में ही खड़ी, चलने में है फेल
मुँह टेढ़ा कर कह रही, जरा खरीदो तेल
जरा खरीदो तेल, दिखाओ हिम्मत थोड़ी
या दो मुझको बेच, खरीदो कोई घोड़ी
सतविंदर कह घास, नहीं वो जिसको ले चर
तो साईकिल  लो साथ, निकालो घर से  मोटर।



कुदरत की भी मार नै, झेलै भई किसान
शासन कुछ कद सोचता, कद सोचै भगवान
कद सोचै भगवान, करै सब ऊँट-मटिल्ला
पाणी मैं ज्या डूब, फसल पाक्की का किल्ला
सतविंदर सब आस, मिटी अर हो री दुर्गत
कदे रेट दे मार, कदे मारै सै कुदरत।


भीजी जीरी खेत मैं, बूफण लागि कपास
घुंडी खा ग्या बाजरा, कती मार र्या बास
कती मार र्या बास, पूत धरती का रोवै
नहीं जाणता आज, कड़े या किस्मत सोवै
सतविंदर हालात,  बुरे हैं फ़सल पसीजी
आत्मा रोवै देख, देख कै इसनै भीजी।


चमड़ा चोखा चमकता, चमक गुणों की दूर
सच्ची सुंदरता दिखे, उस से कोसों दूर
उस से कोसों दूर, कर्म भी जिसके ओछे
फितरत से बदनाम, ढूँढता है जो मौके
'सतविंदर' वह शून्य, रहे देता जो धोखा
सुन्दर कर्म महान, नहीं है चमड़ा चोखा।


जिसके लगते हैं अधिक, तुझको मीठे बोल
उसकी हर इक बात को, बन्दे पूरी तोल
बन्दे पूरी तोल, नहीं सच्चा ही होता
मुँह में रख वह राम, बगल में छुरी पिरोता
'सतविंदर' है स्वार्थ, सिद्धि बस मन में किसके?
लगा उसी पर ध्यान, शहद शब्दों में जिसके।



देखूँ जब-जब आइना, दिखता तेरा अक्ष
जहाँ न तेरा वास हो, नहीं हृदय में कक्ष
नहीं हृदय में कक्ष, खयालों पर हक  तेरा
होगा कहाँ वजूद, बता तुझ बिन क्या मेरा
'सतविंदर' कह प्राण, तुम्हारे कारण हैं सब
दिखे तुम्हारा रूप, जहाँ भी देखूँ जब-जब।

©सतविन्द्र कुमार राणा

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