कुण्डलिया

भाई साच्चा तब कवाँ, रक्षाबन्धन पर्व
भाई के वें कर्म हों, भाणा नै हो गर्व
भाणा नै हो गर्व, नजर हर इक हो आच्छी
दुनिया की हर नार, सुरक्षित हो ज्या साच्ची
'सतविन्दर' कह ठीक, मान की रवै कमाई
नारी का सम्मान, करै वो साच्चा भाई।
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ठाले बैठे ही जिसे, मिलता जाए माल
काम-धाम को छोड़ कर, काटे दिन औ साल
काटे दिन औ साल, नहीं करने की सोचे
खाली बैठा पेट, युँही भरने की सोचे
हो जाता बीमार, देह फिर गड़ गड़ हाले
बनकर रहे हराम, रहे जो बैठा ठाले
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अपने दुख से कम् दुखी,सुख से सबके तंग
ऐसे हर इंसान से,मोह सभी का भंग
मोह सभी का भंग,नहीं जन उसको चाहें
उसकी छवि से दूर,अलग सबकी हों राहें
छीनूँ सबका चैन,यही जो देखे सपने
आने क्यों दे पास,उसे फिर कोई अपने
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 सबका दिल है काँपता, ऐसी घटना होय
चलते रास्ते पर भई, सबकुछ अपना खोय
सबकुछ अपना खोय, मान भी लूटा जाता
मानवता पर मार, समझ में कब कुछ आता
सतविन्दर कविराय, कहाँ का है यह तबका
घटना ऐसी देख, काँपता है दिल सबका
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आजादी वह भाव है,जिससे सबको प्यार
इसको पाने के लिए,हुई बहुत तकरार
हुई बहुत तकरार,कई ने जान गँवाई
हुए शहीद अनेक,तभी आज़ादी पाई
सतविन्दर कविराय,रहे सुख से आबादी
है अद्भुत यह भाव,नाम जिसका आजादी
...

हिंदी अपनी मातु है, हिंदी ही संस्कार
हिंदी ही अपना वतन, हो हिंदी से प्यार
हो हिंदी से प्यार, जिएँ हम सब हिंदी को
जग के माथे आज, दमकती इस बिंदी को
सतविंदर की चाह, सजे यह बिंदी अपनी
इससे स्नेह अपार, मातु है हिंदी अपनी।
...

पावन ही यदि भाव हो, तो पावन त्यौहार
रक्षार्थ सूत्र बाँधती, भाई को हर नार
भाई को हर नार, चाह रक्षा की रखती
हर भाई में नेक, मनुष वेे हर पल लखती
सतविन्दर कविराय, करो सब मन का धावन
पूजित हो हर नार, रहे सबका दिल पावन।
...

हमको लिखना कुछ नहीं, बहुत लिखें हैं लोग
उनकी कॉपी पेस्ट दें, हम करते यूँ भोग
हम करते यूँ भोग, नाम अपना लिख जाएँ
कर्म करे बस और, फलों को हम ही खाएँ
सतविंदर कह बात, लिखे जब भूले दम को
पका-पकाया माल, मिले खाने को हमको
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कीमत उस इंसान की,जिसकी नीयत पाक
शुद्ध विचारों की सदा, जिसके मन पर धाक
जिसके मन पर धाक ,सही गुण पकड़े रखता
पर नारी को देख,सदा माता ही लखता
सतविंदर कविराय, रहे यह सबका अभिमत
इक नीयत ही साफ़ ,बढ़ाए जन की कीमत
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मरती है संवेदना, बढ़ती अब तकनीक
हर दिल हुआ कठोर बस, हृदय हुआ निर्भीक
हृदय हुआ निर्भीक, मनुष को क्या कुछ जाने
जिन्दा हो या लाश, किसी को कब कुछ माने
चल-फोटो  निर्माण, देख घटना का करती
रुदन झूठ के संग, लगे मानवता मरती

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जय गिरिधर गोविन्द हे, नन्द यशोदा लाल
कर जोड़े ध्यावैं तुम्हे, हे नटवर गोपाल
हे नटवर गोपाल, रहें हम तुमको भजते
तन पर पीले वस्त्र, मुकुट माथे जो सजते
होते सब हैं मग्न, देख छवि सब मुरलीधर
दर्शन काटे दुःख, सभी के जय जय गिरिधर
....

जीवन रोशन वो करें,मिटे तमस की रात
पर हित को खुद ही जलें,ज्यों दीपक की बात
ज्यों दीपक की बात,उजाला करती जाए
सच्चा शिक्षक ज्ञान,राह सबको दिखलाए
सतविन्दर कविराय,समर्पित है गुरु को मन
ज्ञान उजाला बाँट,करें जो जीवन रोशन।

5,9,16
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जीवन एक पतंग है,सांस  बनी हैं डोर
उड़ती रहे पतंग भीे,पकड़ उसी का छोर
पकड़ उसी का छोर, चले ऊपर को बढ़ती
उसकी हर इक चाल, डोर ही तो है गढ़ती
साँस रहे जो साथ,सभी महके वन- उपवन
साँस-डोर के साथ,चले है सबका जीवन।
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पीना खाना भी नहीं,रहता जिसको ध्यान
करते रक्षा देश की,रखते उसका मान
रखते उसका मान,सिपाही जो हैं होते
प्रहरी हैं दिन-रात,चैन से कब वे सोते
उनकी ही चौबंद, बचा है ताना-बाना
सैनिक को कब ध्यान,रहा है पीना-खाना।
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समरसता की कामना, करते सब चहुँ ओर
समरस सकल समाज हो, मिटे भेद का जोर
मिटे भेद का जोर, रहे बस भाई चारा
छोटा-बड़ा न कोय, हरेक ईश को प्यारा
सतविन्दर कविराय, सभी में जीवन बसता
हर कोई इंसान, मने तब हो समरसता।

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औरों को उपदेश क्या, क्यों कर ऐसी बात।
प्रथम सुधारें स्वयं को, यही सही शुरुआत।
यही सही शुरुआत, सही हो तभी ज़माना।
ख़ुद में खोट अनेक, गैर को क्या समझाना।
सतविन्दर कविराय, बदल डालो दौरों को।
करो स्वयं शुरुआत, कहो मत कुछ औरों को।।
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सुनता है जो ध्यान से, वो गुन पाता ज्ञान
चिंतन खातिर हे सखे!, इसे जरूरी जान
इसे जरूरी जान, सीखना इच्छा तेरी
चित लगना है ठीक, त्याग चिंता की ढेरी
'सतविंदर' मुस्कान, ज्ञान ही सच में बुनता
शब्द-शब्द ला कान, जगत में ज्ञानी सुनता।

©सतविन्द्र कुमार राणा

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