शब्द बाण-२
1
कहता हो जा तू खड़ा, कभी कहे यह लेट
फैलाता है हाथ भी, क्या-क्या करता पेट
क्या-क्या करता पेट, बड़ा बचपन बन जाता
नाना विधि के खेल, दिखा कर हमें लुभाता
सतविंदर कह कष्ट, क्षुधा का वह ना सहताकहता हो जा तू खड़ा, कभी कहे यह लेट
फैलाता है हाथ भी, क्या-क्या करता पेट
क्या-क्या करता पेट, बड़ा बचपन बन जाता
नाना विधि के खेल, दिखा कर हमें लुभाता
जो कर लेता कर्म, पेट जो उसका कहता।
2
बिन कष्टों के कब मिले, सुख सारे लो जान
जब हो श्रम की साधना, तब मिलता है ज्ञान
तब मिलता है ज्ञान, सहजता से रम जाता
सबक सही यह ध्यान, हमें जीवन भर आता
सतविंदर हो रंक, पूत हों या भूपों के
जीवन किस का नाम, न जानें बिन कष्टों के।
3
होता हो हावी भले, छल चलता कुछ देर
सच से हो जब सामना, हो जाता है ढेर
हो जाता है ढेर, पैर फिर से फैलाता
बार-बार यह हार, मगर सच से है जाता
सतविंदर जो बीज, झूठ के जाए बोता
खोकर सब विश्वास, दूर सबसे वह होता।
4
बातें अब होने लगीं, देखो कोरी गप्प
गप्पेबाजी से न हो, बुद्धि किसी की ठप्प
बुद्धि किसी की ठप्प, नहीं बातों में आना
पहले करो विचार, तभी आगे को जाना
सतविंदर ये लोभ, बिगाड़ेंगे दिन-रातें
पिछला करो हिसाब, गुनों फिर अबकी बातें।
5
रंगत कहते हैं चढ़े, जैसा राखो संग
दो रंगों के मेल से, बने तीसरा रंग
बने तीसरा रंग, नई पहचान बनाए
लक्षण भी कुछ और, नज़र इसका है आए
सतविंदर सत सिक्त, रहे हर सज्जन की मत
सदा कीच का साथ, कमल पकड़े कब रंगत।
6
देखा दुनिया ने सकल, गगन दिया जो भेद
पर घरवाले रो रहे, यही हृदय को खेद
यही हृदय को खेद, हुई क्यों खींचातानी
कर सकते सब गर्व, हुए पर हैं अभिमानी
सतविंदर जिस काल, रहा जो उसका लेखा
कर्मठ को दो श्रेय, भले देखा ना देखा।
7
कुंण्डलिया
परहित को तत्पर रहे, ज्ञान तभी है ज्ञान
पोथी पढ़ पर पीर दे, उसको मूरख जान
उसको मूरख जान, दूसरा जिसे न भाता
और ज्ञान को स्वार्थ, सदा ही रहे दबाता
सतविंदर पुरजोर, करें कितना भी अर्जित
गहना है सद्ज्ञान, सदा जो लगता परहित।
8
छोड़ो भैया नौकरी, बनो सियासतदान
नहीं उम्र की रोक हो, भोगो जब तक जान
भोगो जब तक जान, भाग्य मुट्ठी में रख कर
रखकर कैंची हाथ, कर्मियों के कतरो पर
सतविंदर सह स्वास्थ्य, उन्हें तुम ख़ूब निचोड़ो
घोषित कर के वृद्ध, शीघ्र रस्ते पर छोड़ो।
9
जय-जय जनता की कहो, यह प्रभु का है रूप
इसके आगे ढेर हैं, सब अभिमानी भूप
सब अभिमानी भूप, रहे कल तक अधिशासी
आज लगे हैं खाद्य, हो गए जैसे बासी
सतविंदर न घमंड, रहेगा तो जाए भय
पलकों पर पा स्थान, तुम्हारी होगी जय-जय।
10
इच्छा संग विवेक से, जाकर गुप्ती कक्ष
मतदाता मतदान से, चुनना चाहे पक्ष
चुनना चाहे पक्ष, सँभाले नायक गद्दी
न विपक्षी बन बैठ, बढ़ाए खाली रद्दी
सतविंदर यह सोच, पालता बूढ़ा-बच्चा
मत आ जाए काम, रखे मतदाता इच्छा।
©सतविन्द्र कुमार राणा
Heart touching. Direct masseges
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