स्वप्न सजाना बाकी है

मुक्तक

कोरी कोरी-सी नींदों में, स्वप्न सजाना बाकी है
कुछ बूँदें पानी की टपकी, खून मिलाना बाकी है
खुश हो ले ऐ! अँधियारे हैं कुछ पल तेरे पास अभी
तारों का झुरमुट है अभी, चाँद का आना बाकी है।

©सतविन्द्र कुमार राणा

मुक्तक

धूप-छाँव को सबने देखा, आते-जाते बारी-बारी
नमक लिया हो या फिर मीठा, इनको खाते बारी-बारी
स्वाद एक-सा किसे सुहाए, समय एक-सा किसको भाए?
रात बीतती दिन चढ़ता है, दोनों आते बारी-बारी

©सतविन्द्र कुमार राणा

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