कुण्डलिया

जब भीतर उजियार है, तब बाहर उजियार
प्रेम-दीप मन में जले, रौशन हो संसार
रौशन हो संसार, सहज हर दुख मिट जाए
सच्चा हर व्यवहार, सभी के दिल को भाए
सतविंदर कह द्वेष, घृणा क्योंकर पनपे तब
सत निर्धारित स्थान, रखे हिय में सबके जब।

©सतविन्द्र कुमार राणा

Comments

Popular posts from this blog

ठहरा हुआ समय

भूख, रोटियाँ और सीख- संस्मरण

शब्द बाण-२