कुण्डलिया

1
दाता तेरी जाति औ, बता दिया है धर्म
देख़े कोई स्वार्थ जब, करता जन यह कर्म
करता जन यह कर्म, नीति में उसकी छाया
जो दिखता अनुकूल, मर्म वैसा बतलाया
सतविंदर कर जोड़, खड़ा कुछ समझ न पाता
बतलाओ क्या जाति, तुम्हारी होती दाता?

2
आगे बढ़ना शुरु करें, दुनिया हो प्रतिकूल
मंजिल को यदि पा लिया, फिर जाती है भूल
फिर जाती है भूल, गुणों को गाने लगती
जिससे निकले तंज, बड़ाई जिव्हा करती
सतविंदर रख याद, चढ़े सूरज जग जागे
उसके दिखता साथ, दिखे बढ़ता जो आगे।

©सतविन्द्र कुमार राणा

Comments

Popular posts from this blog

साची

माथे की रोली दिखती