कुण्डलिया

चहुँदिश देखो हैं भरे, ऊर्जा के भंडार
अच्छी को गह लीजिये, तज दीजे बेकार
तज दीजे बेकार, सही का संचय भी हो
कभी करें ना व्यर्थ, इरादा ऐसा ही हो
सतविंदर हिय शांत, रखो तुम वासर-निश
गह लो सत्य विचार, मिले ऊर्जा जो चहुँदिश।(14-12-18)


रखकर मुँह में राम को, छुरी बगल में दाब
ऐसे भी क्या मित्रता, कभी निभे है साब
कभी निभे है साब, मान लो बात हमारी
रिश्ता जो अनमोल, सभी रिश्तों पर भारी
सतविंदर वह मीत, खरा साथी जो पथ पर
सदा सही व्यवहार, करे  मन में सत रखकर


खुद ही है जो फूटती, यह ऐसी है धार
मानो मन के भाव हैं, नहीं हृदय पर भार
नहीं हृदय पर भार, कठिन पर इसे निभाना
जो कहते हैं लोग, वही क्यों हमने माना
सतविंदर कह प्रेम, सहजता में कुदरत की
हो जाता जब देख, चले निभता यह खुद ही।(15-12-18)

©सतविन्द्र कुमार राणा

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