कुण्डलिया

कुण्डलियाँ

माना होता है समय, भाई रे बलवान
लेकिन उसको साध कर, बनते कई महान
बनते कई महान, विचारें इसकी महता
यह नदिया की धार, न जीवन उनका बहता
सतविंदर कह भाग्य, समय को ही क्यों जाना
नहीं सही भगवान, तुल्य यदि इसको माना।
2
होते तीन सही नकद, तेरह नहीं उधार
लेकिन साच्चा हो हृदय, पक्का हो व्यवहार
पक्का हो व्यवहार, तभी है दुनिया दारी
कभी पड़े जब भीड़, चले है तभी उधारी
सतविंदर छल पाल, व्यक्ति रिश्तों को खोते
उसका चलता कार्य, खरे जो मन के होते!
3
हँस कर भाई काट लो, दिन जीवन के चार
छोटी-छोटी बात पर, सही न होती रार
सही न होती रार, बुद्धि भी तनती जाती
दूजा हो बेहाल, शान्ति खुद को कब आती
सतविंदर कह मेल, सही होता इस पथ पर
समय सख्त या नर्म, कटे फिर देखो हँस।

©सतविन्द्र कुमार राणा

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