कुण्डलिया
जो भी तेरे पास है, उसमें कर संतोष
चीज़ पराई चाहना, होता भाई दोष
होता भाई दोष, कपट कर कुछ हथियाना
या फिर हो पुरुषार्थ, वस्तु वैसी यदि पाना
सतविंदर कह सत्य, नहीं नीयत खोटी हो
बड़ा उसे ही मान, बढ़े नेकी करता जो।
लेना फिरकी काम है, बड़े बोलते बोल
ताल लगे जन पक्ष की, बजें न ऐसे ढोल
बजे न ऐसे ढोल, खोल ये पहनें कैसे
वर्षा-दादुर गान, करें फिर छुपतें जैसे
सतविंदर यदि बात, सही तो पड़ता देना
सबसे सस्ता कार्य, भ्रात है फिरकी लेना।
©सतविन्द्र कुमार राणा
जो भी तेरे पास है, उसमें कर संतोष
चीज़ पराई चाहना, होता भाई दोष
होता भाई दोष, कपट कर कुछ हथियाना
या फिर हो पुरुषार्थ, वस्तु वैसी यदि पाना
सतविंदर कह सत्य, नहीं नीयत खोटी हो
बड़ा उसे ही मान, बढ़े नेकी करता जो।
लेना फिरकी काम है, बड़े बोलते बोल
ताल लगे जन पक्ष की, बजें न ऐसे ढोल
बजे न ऐसे ढोल, खोल ये पहनें कैसे
वर्षा-दादुर गान, करें फिर छुपतें जैसे
सतविंदर यदि बात, सही तो पड़ता देना
सबसे सस्ता कार्य, भ्रात है फिरकी लेना।
©सतविन्द्र कुमार राणा
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