1 कहता हो जा तू खड़ा, कभी कहे यह लेट फैलाता है हाथ भी, क्या-क्या करता पेट क्या-क्या करता पेट, बड़ा बचपन बन जाता नाना विधि के खेल, दिखा कर हमें लुभाता सतविंदर कह कष्ट, क्षुधा का वह ना सहता जो कर लेता कर्म, पेट जो उसका कहता। 2 बिन कष्टों के कब मिले, सुख सारे लो जान जब हो श्रम की साधना, तब मिलता है ज्ञान तब मिलता है ज्ञान, सहजता से रम जाता सबक सही यह ध्यान, हमें जीवन भर आता सतविंदर हो रंक, पूत हों या भूपों के जीवन किस का नाम, न जानें बिन कष्टों के। 3 होता हो हावी भले, छल चलता कुछ देर सच से हो जब सामना, हो जाता है ढेर हो जाता है ढेर, पैर फिर से फैलाता बार-बार यह हार, मगर सच से है जाता सतविंदर जो बीज, झूठ के जाए बोता खोकर सब विश्वास, दूर सबसे वह होता। 4 बातें अब होने लगीं, देखो कोरी गप्प गप्पेबाजी से न हो, बुद्धि किसी की ठप्प बुद्धि किसी की ठप्प, नहीं बातों में आना पहले करो विचार, तभी आगे को जाना सतविंदर ये लोभ, बिगाड़ेंगे दिन-रातें पिछला करो हिसाब, गुनों फिर अबकी बातें। 5 रंगत कहते हैं चढ़े, जैसा राखो संग दो रंगों के मेल से, बने तीसरा रंग बन...
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