बादल



मुक्तक

देह तपी जाती है सारी, दिल पर पर है छाया बादल
आस लगाए बैठा प्यासा, सोचे आया-आया बादल
जब-जब प्यास बुझाने की बस, आशा उससे  रख लेते हैं
झूठे जादूगर की जैसे, होता खाली माया बादल

©सतविन्द्र कुमार राणा

4.7.19
मुक्तक

तुम्हारा बोल हर-इक मेरे मन का गीत बन जाए
कि तुमसे हार ही मेरी असल है जीत बन जाए
बनें हम राधिका-मोहन मुहब्बत के हवाले से
हमारी प्रीत इस सारे  जगत की रीत बन जाए।

©सतविन्द्र कुमार राणा

6.7.1९

पीड़ा सह कर खुश रहें, अद्भुत ऐसे लोग
जीवन का कारण यही, या है कोई रोग
कहे राधिका जिंदगी, के दिन होते चार
युगों-युगों जुड़कर रहें,  प्रेम  करे वह योग।

©सतविन्द्र कुमार राणा

जिसको पीकर मस्त रहें बस
बोलो कैसी है हाला
मुक्ति यहाँ बन्धन है लेकिन
नहीं दिखे कोई ताला
दूर नहीं हो पाता हिय से
तन कितना भी दूर रहे
राधा के जैसे पी लेता
प्रेम पूर्ण जो भी प्याला।


©सतविन्द्र कुमार राणा

Comments

Popular posts from this blog

साची

माथे की रोली दिखती