शब्द बाण


1
दुनिया सच पर है टिकी, सच सकल जगत का मूल
सच पथ लेकिन जो बढ़े, पग-पग मिलते शूल
पग-पग मिलते शूल, करें घायल पैरों को
करें स्वजन को दूर , निकट करते गैरों को
'सतविंदर' पर झूठ, बुरा है उससे तो बच
काँटों में हैं पुष्प, जानती यह दुनिया सच।

2

सुर से सै संगीत सब, सुर सामूहिक गान
सुर मिलकै जब बोलते, छिड़े कसूती तान
छिड़े कसूती तान, बोल होते मतलब के
सधै जहाँ तै स्वार्थ, जगह उस चालैं सब के
'सतविंदर' यदि लाभ, दौड़ चलै विरोधी-पुर
पल मैं दिख ज्यां यार, बदलते-से सबनै सुर।

3

अपनी खाली कोठड़ी, खोल रहे भंडार
मुक्त सभी को बाँट दें, खुद दाता के द्वार
खुद दाता के द्वार, करें विनती पोषण की
कर दो कुछ तो दान, दबें बातें शोषण की
सतविंदर जब चाल, चलें मिलती तब ताली
जिससे ताला खोल, धरें हम कुर्सी खाली।

4


हर घर में है डॉकटर, घर-घर में उपचार
 मिल जाते काउंसलर, अब हर दूजे द्वार
अब हर दूजे द्वार, मगर डर का भी घेरा
कोई समझे बात, अक्ल पर कहीं अँधेरा
सतविंदर लाचार, जिंदगी जब जिंदा डर
समझ करे स्वीकार, सुरक्षित तब ही हर घर।

5

देखें जब-जब  मनुज को, जातें भय से काँप
चोरी होता ख़ास गुण, लेतें हैं वे  भाँप
लेते हैं वे भाँप, जानतें हैं गिरगिट सब
नयन मकर के ठीक, बहाते हैं आँसू कब
सतविंदर कह हाल, हुआ है कैसा  ये रब!
सही जानवर आज, लगे नर देखें जब-जब।

6

छोटी घटना हो बड़ी, देखे सब संसार
करने लगते कैद जब, नाना छायाकार
नाना छायाकार, बिम्ब-पेटी  हाथों में
आती थैली छोड़, देख बातों-बातों में
सतविंदर चलचित्र, बनाते आदत खोटी
कर देते विस्तार, बढ़े तब घटना छोटी।

बिम्ब-पेटी: कैमरा(मोबाइल)
थैली:जेब

7

शब्द बाण

अब प्रतिभा को  किस तरह, मिल पाए सम्मान
अवसर जब उसको मिले, जिसको भूखा जान
जिसको भूखा जान, मिले उसको भी रोटी
शिक्षण में अधिकार, नौकरी छोटी-मोटी
सतविंदर लो जान, मुल्क का क्या अच्छा सब
योग्य रहेंगे दूर, चलाएंगे कमतर अब।

8

तेवर की यदि बात हो, मौसम-सी है धार
कल तो सख्ती में दिख़े, अब कोमल व्यवहार
अब कोमल व्यवहार, करें देते शाबाशी
तजकर कड़वे बोल, बने देखो मृदुभाषी
सतविंदर है साच, सियासत के ये जेवर
मौके के अनुसार, बदल जाते हैं तेवर।
9
सारा कुनबा जुड़ गया, चाह जीतना देश
अंदर कालिख है भरी, ऊपर धवला वेश
ऊपर धवला वेश, संग हैं जिनके रोबट
कहने पर लें दौड़, हुक्म बिन ना लें करवट
सतविंदर जन-आम, नज़र में जिनकी गारा
मिले मतों का ढेर, लूटते ये जऱ सारा।

10.


 'जी'  क्या केवल  शब्द है, करना होगा गौर
देता है सम्मान यह, मैं बोलूं या और
मैं बोलूँ या और, शब्द होते बहुतेरे
जिनके बनते पात्र, हरामी चोर लुटेरे
सतविंदर हो ध्यान, शान में बोलें किसकी
उसका  करते मान, बोलते हैं जिसको 'जी'।

©सतविन्द्र कुमार राणा






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