राजमार्ग का एक हिस्सा (लघुकथा)



भारी गाड़ियों के आवागमन से कम्पित होता, तो कभी हल्की गाड़ियों के गुजरने से सरर्सराहट महसूस करता हूँ।  घोर कुहरे में  इंसानों की दृष्टि जवाब दे जाती है, मगर मैं दूर से ही दुर्घटना की संभावना  को भांपकर सिहर उठता हूँ।

देखता हूँ नई उम्र को मोटरसाइकिलों पर करतब करते निकलते हुए। बेपरवाही जिसके शौंक में शामिल है।

हाल ही की  तो बात है, ऐसा करते हुए उस किशोर की बाइक गिर कर कचरा हो गई थी। पीछे से आते ट्रक ने दल दिया था उसे। मेरा काला शख्त सीना पसीज गया था,  इस पर रक्त उभर आया था। 

चालकों की गलतियों,उनके आपसी झगड़ों का साक्षी रहा हूँ। अपशब्दों की पराकाष्ठा का भान है मुझे।

कभी-कभी तीखे सायरन की अगुवाई में सरपट दौड़ते काफिले  जिन गाड़ियों का मुहँ चिढ़ाते हुए निकल जाते हैं,उनकी बेबसी से परिचित हूँ।

आज एक मोटर साइकिल सवार के सामने अचानक केले के छिलके आ गिरे। टायर के नीचे आते ही जिसका नियंत्रण डगमगा गया। वह दूर कच्चे में गिरा। चोट तो ख़ास आई नहीं पर वह सहमा हुआ-सा उठा। उसने काफी आगे निकल चुकी गाड़ी को गालियाँ दी। केले के छिलकों पर एक नजर डाली। मोटर सायकिल सम्भाली और चलता बना। छिलके वहीं मेरे सीने पर लेटे इंसानियत को चिढ़ा रहे थे। मैं बेबस उनका बोझ सह रहा था। मैं -’राजमार्ग का एक हिस्सा’।

©सतविन्द्र कुमार राणा

30-11-2017

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