फाइदा खुद का भी देखकर हो गए- ग़ज़ल



फ़ायदा खुद का भी देख कर हो गए,
कुछ इधर हो गए, कुछ उधर हो गए।

चश्म तो हैं खुले पर दिखे कुछ नहीं,
रास्ते धुंध से तर-ब-तर हो गए।

आग से बुझ रही, आग जब पेट की,
घी को ले कर खड़े आग पर हो गए।

बाग अब लग रहा घोर जंगल कोई,
लोभ से फूल सब जानवर हो गए।

तोड़ने के सबक सीखते हैं जहाँ
वो मकातिब सभी को नज़र हो गए।


©सतविन्द्र कुमार राणा

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