रोशनी का वार: नवगीत
धूल, धूम्र और अँधेरे,
कब तलक रवि को ढकेंगे?
टूटना उनके छलों का,
जान लो हर बार होगा।
मेघ भूले राह जब- जब
सूखता कृषक का सपना
खेत को लेकिन खड़ा वह
सींचता निज श्वेद अपना
कर्म के ही हाथ उसके,
भाग्य का फिर तार होगा।
ढोंग करे कोई ढोंगी
कुछ समय तक जीतता है
सत्य किरण पर है आती
यह समय जब बीतता है
है तमस की हार निश्चित,
रोशनी का वार होगा।
कंटकों से भरा है ये
मार्ग जो अब दिख रहा है
लेकिन इसका राही ही
इक इबारत लिख रहा है
समझ के संग हौसले से
मार्ग ऐसा पार होगा।
©सतविन्द्र कुमार राणा
उत्तम गीत
ReplyDeleteसादर आभार
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