कलमगोई किस्से बहुत माँगती है- ग़ज़ल



ये तकलीफ रिश्ते बहुत माँगती है
कलम गोई किस्से बहुत माँगती है

भले टेढ़ी बातों में फँसती है जनता
 ये उत्तर तो सादे बहुत माँगती है

टिकी फितरतें झूठ पर जिसकी सारी
वो वादे पे वादे बहुत माँगती है

बड़ी बातें साहब बनाते रहे हो
सियासत है जुमले बहुत माँगती है

करो दफ्न ग़ैरत मरी जो तुम्हारी
*खुली कब्र मुर्दे बहुत माँगती है।*

जरा रुक के देखो सुनो कुछ हमें भी
मुहब्बत है लम्हे बहुत माँगती है।

©सतविंद्र कुमार राणा

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