जिंदगी है जिंदगी से प्यार है रोटी- ग़ज़ल



वक्त पर हर शख्स की दरकार है रोटी
जिंदगी है जिंदगी से प्यार है रोटी।

जुस्तजू में इसकी बीतें रात दिन सबके
 हर किसी का देख कारोबार है रोटी।

जन्म लेता ख़्वाब वादों से किसी का ये
खुद रियाया और खुद सरकार है रोटी।

सब्र का यह बाँध बन जाती कभी देखो
तोड़ने वाली उसे, तकरार है रोटी।

अपनों से इंसान को यह दूर करती है
जोड़कर रखती जो फिर भी तार है रोटी।

गूँथ जाता प्यार से गीला हो जब आटा
पेड़े पे हाथों की हल्की मार है रोटी।

शर्म में डूबे रहें पकवान थाली में
साथ इनके जब तलक ना यार है रोटी।


©सतविन्द्र कुमार राणा 'बाल'











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