हर सफ़े का हिसाब बाकी है

 देख लीजे ज़नाब बाकी है,

हर सफ़े का हिसाब बाकी है।


जब तलक इंतिसाब बाकी है,

तब तलक इंतिहाब बाकी है।


बर्क़-ए-शम से मिच मिचाए क्यों,

आना जब आफ़ताब बाकी है?


चंद अल्फ़ाज पढ़ के रोते हो,

पढ़ना पूरी क़िताब बाकी है।


रौंदने वाले कर लिया पूरा,

अपना लेकिन ख़्वाब बाकी है।


'बाल' अच्छा कहाँ यूँ चल देना,

जब कि काफ़ी शराब बाकी है।

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इंतिसाब: उठ खड़े होना।

इंतिहाब: लूटना, डाका डालना, लुटना।

बर्क़-ए-शम: दीप की चमक।



©सतविन्द्र कुमार राणा 'बाल'


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