नाम हुआ प्रह्लाद भगत का, मन में जिनके बसे विधाता उनके ही पुत्र विरोचन की, सन्तान हुई थी इक दाता महाबली महाराज वह था, रहता जो घमंड भरा था दैत्य राज वह बन बैठा था, गुण शुक्राचार्य से धरा था तीनों लोकों को जीते यह, जिसने जब मन में ठानी थी सब देवों को धूल चटाकर, दैत्यों की इज्जत लानी थी बल पौरुष का धनी हुआ वह, बली सही ही कहलाता था जीत मही को आगे बढ़ता, देवलोक भी हिल जाता था। तीन लोक को जीत लिया तब, बली बना सम्राट जगत का दैत्यों का तो अधिपति था वह, पौत्र हुआ प्रह्लाद भगत का लहू लिए खूंखार नशों में, अंश भक्ति का भी रखता था दया हृदय में उसके भी थी, दे वचन निभा वह सकता था दैत्यों का अत्याचार बढ़ा, सब ओर मची अफरातफरी मनुष देव सब दुखी हो गए, आदत दैत्यों की यह अखरी ईश्वर से तब करी प्रार्थना, हे भगवन! हमें बचा लो तुम नर्क हुआ संसार हमारा, प्रभु! इससे हमें निकालो तुम त्रेता युग का काल चला था, जब श्री हरि ने आकार लिया पहली बार तभी भगवन ने, मानव तन में अवतार लिया बौने ब्राह्मण हुए भगवन, वामन का वे अवतार बनें लकड़ी छत्री लिए हाथ में, अतिथि बली के दरबार बनें। आचार्य शुक्र यह ...