१. रीति-नीति निरपेक्ष यह, हर बंधन से दूर। प्रेम-पाश पर बंध से, हर बंधन मजबूर।। २. शक्ति बने है जो कभी, करे कष्ट से पार। कभी दुखी हमको करे, इच्छा वह सरकार।। ३. नीति-नियम का हे सखे!, सदा राखियो ध्यान। भीड़ पड़े पर है खरा, स्वयं विवेक सुजान।। ४. बढ़ना आगे तब सही, जब लें सही विचार। आँख मूँद यदि चल दिये, गिरें गर्त में यार।। ५. ठोकर खाकर भी मिले, ज्ञान सही मत भूल। ठोकर हालत को करे, जीवन के अनुकूल।। ६. मानुस कर्मों से रखे, स्वच्छ नीर औ वात। जीवन के अनुकूल हो, तभी अवनि सुन बात।। ७. दरखत काटे सो रहा, घर में नर ले चैन। नीड़ लिए अंडा रखा, लगा द्वार पर नैन।। ८. जिसका फल है कष्ट ही, वह है अतिविश्वास। हिय को संयत राखिए, रहे जागती आस।। ९. हार मिले है तय यही, जाने सब संसार। एक कण्ठ शोभा बने, दूजा जाए हार।। १०. व्यर्थ न हो बिन कार्य के, समय, खाद्य औ बोल। हम सब यह भी जान लें, पानी है अनमोल।। ११. अन्तस् में रख रौशनी, दिखता जो बेनूर। श्रम कर पोषण कर रहा, वह हर जन मजदूर।। १२. नभ छूते जाएँ भवन, धुर पाताल खदान। श्रमजीवी के कर्म में, दिखे निराली शान।। १३. भावों के अतिरेक में, गलत बोलना झूठ...